अजमेर में नौकरी करने के दौरान मनोविज्ञानी और समाजशास्त्री उमा जोशी अक्सर अपनी बातों से मुझे प्रभावित करती थीं। वो हमेशा बजटिंग ऑफ टाइम पर जोर देती थीं। कहती थीं कुछ लोगों के पास घंटे अधिक होते हैं, क्योंकि उन्हें समय का ठीक उपयोग आता है।
आमतौर पर लोग अपनी जरूरतों को बजटिंग ऑफ टाइम का हिस्सा नहीं मानते हैं, जिससे उन्हें ऑफिस और अपने व्यक्तिगत काम के बीच तालमेल बिठाने में श् मुश्किल आती है। उमा जी का कहना था कि यदि हम अपनी जरूरतों और गैर जरूरी कामों का बँटवारा कर लें तो हमारे पास भी दो-चार घंटे ज्यादा होंगे।
उमा जोशी का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बहुत ही सकारात्मक है। एक बार फैशन में बदलाव के सिलसिले में उनका मत जानने के लिए फोन लगाया। उन्होंने कहा कि बदलते ट्रेंड के साथ चलन में आने वाले पहनावे को जो लड़कियाँ अडाप्ट कर लेती हैं, वो बदलाव के लिए हमेशा तैयार होती हैं। इससे उन्हें आगे के जीवन में बहुत मुश्किलों से निपटने में आसानी रहता है।
उमा जोशी का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बहुत ही सकारात्मक है। एक बार फैशन में बदलाव के सिलसिले में उनका मत जानने के लिए फोन लगाया। उन्होंने कहा कि बदलते ट्रेंड के साथ चलन में आने वाले पहनावे को जो लड़कियाँ अडाप्ट कर लेती हैं, वो बदलाव के लिए हमेशा तैयार होती हैं। इससे उन्हें आगे के जीवन में बहुत मुश्किलों से निपटने में आसानी रहता है।
उमाजी की बात ने मुझ पर गहरा असर डाला। तात्कालिक तौर पर जो स्टोरी निगेटिव भी वो फैशन के पॉजिटिव आस्पेक्ट में लिखी गई। उनकी इन दोनों बातों में मुझे जावन के उजले पक्ष को स्वीकार करने की प्रेरणा दी।