Thursday, February 28, 2008
बिहारियों ने आपका क्या बिगाड़ा है भाई
रेल बजट पेश हुआ और मेरे सहयोगियों और मित्रों ने अपेक्षित आपत्ति दर्ज की। मैं उनकी आपत्ति के प्रति भी सद्भाव रखता हूँ। लेकिन आपत्ति करने के तरीके से मुझे आपत्ति है। आपत्ति यह की बिहार में ज्यादा ट्रेन क्यूँ है?
किसी भी आलोचना में ये बात हजम नहीं हो पाती है। आप ये कहें कि मेरे वहाँ सुविधाएँ क्यों नहीं है तो सही लगता। जहाँ तक बिहार की बात है, झारखंड बनने के बाद वहाँ विकास के रास्ते बंद हो गए। साथ ही हर साल आने वाली बाढ़ की विभिषिक उसे हर बार दो साल पीछे ढकेल देती है।
अब तो उनके मजदूरी से रोजगार के निवाले भी छिने जा रहे हैं। पहले ये कार्यक्रम असम में चालू था, अब महाराष्ट्र में जारी है। माँ भी अपने सबसे कमजोर बच्चे का ख्याल करती है, तो बिहार के बारे में कोई भी कार्यक्रम बनाए जाने पर आपत्ति क्यों होती है।
करीब चार-पाँच साल पहले बिहार गया था। पहली मर्तबा बिहार का प्रवास था। वो भी हाजीपुर से टाटानगर तक जाना था। बिहार में रहना भी नहीं था, लेकिन पूरे समय अनजाना-सा भय भीतर से ही काट रहा था। मजेदार बात हुई कि टाटानगर से वापस लौटने पर पटना से हाजीपुर आकर कनेक्टिंग ट्रेन पकड़नी थी। सोचकर ही पांव फूल रहे थे। बिहार न हुआ, तालिबान में हों।
खैर, पटना पहुँचा। इससे पहले मेरे सहयात्री मेरी बेचैनी देखकर मुझे पटना से हाजीपुर तक कैसे जाना है- बता रहे थे। स्टेशन पहुँचने पर तो एक सज्जन ने बकायदा एक कार में भी बिठा दिया। बिहार के बारे में जैसा सुना था, मारे डर के उस सज्जन के जाने के बाद गाड़ी से उतर गया और लगा कि किसी गैंग का आदमी न हो। (उक्त सज्जन झमा करें।)
आधे घंटे इधर उधर भटकने के बाद वापस दूसरी गाड़ी में बैठ गया। ठसाठस भरी कार में अपनी ओर से पूरी बिहारी बनने और उन जैसा बोलने की कोशिश भी की, ताकि कोई भी अप्रत्याशित हादसा न हो। आधे घंटे बाद हम हाजीपुर पहुँच गए और अगली सुबह मैं अपने घर था। इसके बाद कई बार बिहार जाना हुआ। डर खत्म हो गया।
ऊपर लिखे मेरे इस संस्मरण का आशय केवल यह है कि बिहार पिछड़ा जरूर है, असभ्य नहीं है। वहाँ के लोग मेहनती हैं और अपने पसीने की नहीं बल्कि खून से सनी रोटी खाते हैं। इसके लिए उन्हें ‘बिहारी’ होने की गाली सुननी पड़ती है।
पिछले कुछ साल से अपनी नौकरी के दौरान मैंने देश के कुछ हिस्से में बिताए, जहाँ यह जानकर बहुत दु:ख हुआ कि लोगों में बिहार के बारे में लेकर कितना मिथ है। वहाँ जैसी सड़कें तो महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी हैं। क्राइम तो आंध्र में क्या कम है? राजस्थान, पंजाब में तो बेटी पैदा होने पर उनके मुंह पर बालू की पोटली रखकर मार दिया जाता है। इंदौर के अखबारों में कई बार यह छपते देखा है कि स्थिति बिहार जैसी हो गयी है। हंसी आती है। न जाने क्यों उन्हें शर्म नहीं आती- देश में सबसे बड़ी क्रिमिनल एक्टिविटी वाला सिटी बनने पर भी दूसरे की तुलना करते हैं। वो तो खुद ही उदाहरणीय हैं।
तो भी अपराध और पिछड़ेपन का तमगा अकेले बिहार पर क्यों? बिहार और बिहारियों के खिलाफ इतना भेदभाव क्यों?
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