Wednesday, February 20, 2008

साथ बुढ़ी होने की कसम

प्रेम की अभिव्‍यक्‍ति निराली है। प्रेम करना तो आसान है लेकिन इसे बयाँ करने में अच्‍छे-अच्‍छे सूरमाओं के पसीने छूट जाते हैं। जो बोल नहीं पाते वो ख़त लिखते हैं। कुछ तो सिर्फ आगे-पीछे डोलते रहते हैं। वैसे ऐसा भी माना जाता है कि है प्‍यार आँखों की भाषा है। इसे लब्‍जों में ढालने की जरूरत नहीं होती है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता है और प्रेमी-प्रेमिकाओं में इस बात की साध होती है कि उन्‍हें भी ‘कोई’ इजहार-ए-मुहब्‍बत करता। लाजिमी है, अच्‍छा सुनना सभी को अच्‍छा लगता है। लेकिन इजहार करने वालों की धुकधुकी उस समय बंद हो जाती है, जब इजहार ही अंतिम रास्‍ता हो। ये ज्‍यादातर तब होता है, जब कबाब में हड्डी यानी कोई दूसरा भी कतार में खड़ा हो। खैर, हम अपनी बात पर आते हैं। बात उन दिनों की है, जब मैं स्‍कूल की पढ़ाई पूरी कर कॉलेज में गया था। को-एजुकेशन में पढ़ाई करने के कारण साथ में लड़कियों और लड़कों का रेला था।

कुछ लड़के, लड़कियों को लुभाने के लिए तमाम जतन करते। मसलन, नई रिलीज हुई फिल्‍म के हीरो की तरह कपड़ा पहनना, फुटपाथ से हीरो जैसा 25 रुपए वाला चश्‍मा लगाना और बार-बार उसे स्‍टाइल से पॉकेट में रखना, वगैरह-वगैरह। लेकिन प्‍यार के दो बोल उनकी हलक में ही अटक जाते थे।

हमारे साथ ही विनोद भाई भी पढ़ा करते थे। ‘भाई’ इसलिए कि वो हम सबसे उम्र में काफी बड़े थे। तो विनोद भाई का दिल आ गया, साथ ही पढ़ाई करने वाली शुभांगी पर। नाम के अनुरूप ही शुभांगी खूबसूरत थी और उसे इस बात का नाज भी था। वैसे उसे चाहने वालों में विनोद भाई अकेले नहीं थे। कतार लंबी थी। इस बात से वो भी वाकिफ थे। सो सभी को बता दिया कि शुभांगी उनकी ‘अमानत’ है। किसी के दिल में कोई भी बुरा ख्‍याल हो तो उसे बाहर निकाल दे। इसके लिए विनोद ‘भाईगिरी’ भी कर सकते थे। लेकिन उन्‍होंने सोचा की इससे शुभांगी पर गलत इंप्रेशन पड़ेगा। उम्र और शरीर सौष्‍ठव से पहले भी पूरा कॉलेज डरता था और कहीं उन्‍होंने बाहर वाले कैंटीन में बुला लिया तो सामने वाले की बैंड बजा देते।

वैसे अभी विनोद भाई का बैंड बजने की बारी थी। स्‍कूल में शुभांगी के चाहने वालों पर उनकी भाईगिरी खास असर नहीं डाल पा रही थी। उनके डर से इजहार तक बात तो नहीं पहुँच पाती थी, लेकिन आँखों के इशारे तो कई कर रहे थे। इधर शुभांगी मैडम को भी यह सबकुछ अच्‍छा लग रहा था। प्‍यार की साध भी बड़ी निराली होती है। इजहार करो तो बेशर्म, लुच्चा, लफंगा और नहीं करो तो भोंदू। उसकी हर नाजो-अदा पर पूरा कैंपस मिटने को तैयार था, लेकिन विनोद भाई का ध्‍यान आते ही ख्‍याल मन से निकाल देता। विनोद भाई ने भी शुभांगी के अपने प्रति सॉफ्ट कॉर्नर के बारे में सबको बता रखा था। इसे बताने के पीछे दो कारण थे - पहला, हर चाहने वाला अपने मन से शुभांगी का ख्‍याल निकाल दे और दूसरा, ‘शुभांगी का भाई के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर’, इसलिए कि कहीं इजहार का नकार मिला तो भी इज्‍जत का फालूदा न बने।इधर वक्‍त गुजर रहा था और सबकुछ विनोद भाई के हाथ से फिसल रहा था। साथ के लड़कों से इजहार करने के कई tariikeपूछे। तरीके भी तमाम मिले- किसी ने फूल के साथ गुलाबी रंग के लेटर पैड पर सेंट छिड़कर प्रेम-पत्र लिखने की सलाह दी तो किसी ने ‘बोल दे खुल्‍लम खुल्‍ला’ स्‍टाइल अपनाने को कहा। किसी ने सड़क पर मोटे-मोटे अक्षरों में बड़े से तीर वाले दिल के बीच अपना और उसका नाम लिखने की सलाह दी।

बहरहाल, चूँकि ‘भाई’ उम्र में भी बड़े थे, तो उन्‍होंने बिना कुछ कहे बस मन में ठान लिया किया कि अगले दिन इजहार-ए-मोहब्‍बत करेंगे। फुटपाथ से तमाम सजने-सँवरने के सामान और एसेसरीज खरीदी, साथ ही शेरो-ओ-शायरी वाली किताब भी। ताकि इजहार में वजन आ सके और बात गहरा असर भी करे। रात करवट बदलते हुए बीती। शुभांगी से बात करने का होमवर्क भी इस बीच कर लिया। कपड़े वगैरह की सारी तैयारी रात में कर ली। घबराहट के मारे सुबह नींद भी जल्‍दी खुल गई। अब करने के लिए भी कुछ नहीं बचा था। घबराहट ऐसी की सारे ‘जरूरी’ काम दो-दो बार कर लिए। सुबह हुई। कॉलेज पहुँचे। शुभांगी दिखी। इधर धुकधुकी भी बढ़ी। भारी कदम और रात के होमवर्क को याद करते हुए ‘भाई’ पास पहुँचे। उनकी दी हिदायत के मुताबिक उस वक्‍त वहाँ कोई नहीं था। भाई और शुभांगी के बीच क्‍या-क्‍या बातें हुईं, बता नहीं सकता, लेकिन इसके बाद विनोद भाई काफी गंभीर हो गए। शुभांगी के हाव-भाव में काफी बदलाव आ गया और हमारी बैचेनी भी बढ़ने लगी। क्‍या शुभांगी भाई से डर गई, क्‍या भाई को उसने दुत्‍कार दिया ?... इधर भाई से इस सिलसिले में पूछने की किसी में हिम्‍मत नहीं हुई, उधर शुभांगी से बाकी लोगों ने भाई को मिले संभावित जवाब की आशंका में दूरी बना ली। भाई बड़े होने के बाद भी हम लोगों से काफी हिले मिले थे। काफी दिनों बाद एक दिन उनका मिजाज देखकर उनके इस गंभीर रवैए के बारे में जानने के लिए उन्‍हें कुरेदना शुरू किया। पहले तो भाई ने टाल दिया और उनकी मुस्‍कुराहट देखकर बात बढ़ाने का साहस भी होता गया। काफी कुरेदने के बाद उन्‍होंने बताया कि उस दिन शुभांगी से उन्‍होंने कहा था कि ‘क्‍या आप मेरे साथ बूढ़ा होना पसंद करेंगी’। इस पर शुभांगी ने उनके इजहार करने के तरीके की सराहना की और आँखों से हामी का संकेत देकर चली गई।

4 comments:

Ashish Maharishi said...

भइया ई तो बता दें कि आप कौन से अंकित हैं

अनिल पाण्डेय said...

blogging ki dunia mein swagat ankit...istaqbaal...

Chhindwara chhavi said...

dear ankit,

badhai...

हमें भी इजहार सिखा दो भइया ...

ramkrishna

https://www.dongretrishna.blogspot.com

P.K.Mishra (Banarasi) said...

Dear Ankit (Sonu)
Full marks to you. Kya khoob likha hai. Story me dam tha aur baat dil ko chu gayee. Keep it up. My wishes for u.

Your Childhood friend
Rinku 9415227186