Sunday, September 6, 2009

गर्म हुआ धरती का एयर कंडीशनर


जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस गैसों के लगातार बढ़ते उत्सर्जन से आर्कटिक का तापमान दो हजार वर्षो में सर्वाधिक हो गया है। गर्मी के मौसम में यहां तापमान में 1.66 सेल्सियस डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। उत्तरी ध्रुव के तापमान में यह वृद्धि पिछले एक दशक में सबसे अधिक है। सिलसिला यूं ही चलता रहा तो प्राकृतिक एयर कंडीशनर माना जाने वाला आर्कटिक अगले चार सदी में धरती को ठंडा बनाने की अपनी क्षमता खो देगा।

पृथ्वी का चक्र प्रभावित : अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के दल ने पाया है कि कार्बन डाई ऑक्साइड और अन्य गैसों के उत्सर्जन से 21 हजार वर्षो का वह चक्र प्रभावित हुआ है, जिसमें सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने के दौरान पृथ्वी की कक्षा में क्रमिक बदलाव होता है। इस शोध की रिपोर्ट हाल ही ‘साइंस’ जर्नल में प्रकाशित की गई है।

औसत तापमान बढ़ा : नार्दन एरिजोना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉरेल कॉफमैन के मुताबिक, उत्तरी ध्रुव के ठंडा होने की वजह पृथ्वी की कक्षा में क्रमिक परिवर्तन थी। इस बदलाव से आर्कटिक धीरे-धीरे सूर्य से दूर होता गया और वहां ठंडक बढ़ती गई। यह क्रम 20वीं और 21वीं सदी तक चलना चाहिए था, लेकिन शोध में ऐसा न होने की पुष्टि हुई है। इस क्षेत्र में गर्मी के दौरान औसत तापमान में 1.66 सेल्सियस की वृद्धि हुई है।

औधोगिक क्रांति के नुकसान : आर्कटिक के ठंडा होने का क्रम करीब 7000 वर्ष पहले शुरू हुआ था और 16वीं से 19वीं सदी के मध्य के ‘लिटिल आइस एज’ में वहां का तापमान न्यूनतम स्तर तक पहुंच गया था। लेकिन औद्योगिक क्रांति शुरू होने के साथ आर्कटिक पर इसका प्रतिकूल असर दिखना शुरू हो गया। इस क्षेत्र में गर्मी के मौसम में समुद्र की बर्फ पिघलने लगती है और समुद्र के पानी का रंग गहरा हो जाता है। इससे सूर्य की किरणों परावर्तित होने के बजाय सोख ली जाती हैं। फलस्वरूप गर्मी और बढ़ जाती है।

धरती का थर्मामीटर : आर्कटिक पर गर्मी से भू-भाग के ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। इससे समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है। शोध से जुड़े यूएस नेशनल सेंटर फॉर एटमास्फियरिक रिसर्च के वैज्ञानिक डेविड स्नाइडर ने बताया, ‘आर्कटिक ऐसी जगह है, जिसे देखकर आप जलवायु में हो रहे बदलाव का सबसे पहले पता लगा सकते हैं और इसका धरती के शेष क्षेत्रों पर क्या असर पड़ेगा इसका सहज अनुमान लगा सकते हैं।’

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