भारत के विकास में महिला साक्षरता का बहुत बड़ा योगदान है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि पिछले कुछ दशकों से ज्यों-ज्यों महिला साक्षरता में वृद्धि होती आई है, भारत विकास के पक्ष पर अग्रसर हुआ है। इसने न केवल मानव संसाधन के अवसर में वृद्धि की है, बल्कि घर के आँगन से ऑफिस के कैरीडोर के कामकाज और वातावरण में भी बदलाव आया है।
महिलाओं के शिक्षित होने से न केवल बालिका-शिक्षा को बढ़ावा मिला, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और सर्वांगीण विकास में भी तेजी आई है। महिला साक्षरता से एक बात और सामने आई है कि इससे शिशु मृत्यु दर में गिरावट आ रही है और जनसंख्या नियंत्रण को भी बढ़ावा मिल रहा है। हालाँकि इसमें और प्रगति की गुंजाइश है। स्त्री-पुरुष समानता के लिए जागरूकता जरूरी है।
नि:संदेह अंग्रेजों का शासन बहुत बुरा था, लेकिन महिलाओं की स्थिति में जो मौलिक बदलाव आए वो इसी जमाने में जाए। कम से कम प्राचीन भारतीय संस्कृति में तो महिला की इज्जत थी ही। मुगलों और उससे पहले आक्रमणकारी लुटेरों के शासन के साथ ही उनकी दशा में गिरावट आई।
पिछले कुछ दशकों से ज्यों-ज्यों महिला साक्षरता में वृद्धि होती आई है, भारत विकास के पक्ष पर अग्रसर हुआ है। इसने न केवल मानव संसाधन के अवसर में वृद्धि की है, बल्कि घर के आँगन से ऑफिस के कैरीडोर के कामकाज और वातावरण में भी बदलाव आया है।
ब्रिटिश काल में राजाराम मोहन राय और ईश्वरचंद विद्यासागर ने महिलाओं की उन्नति के लिए आवाज उठाई। उनका साथ पूरे देश में देने के लिए महाराष्ट्र से ज्योतिबा फुले और डॉ. आम्बेडकर आगे बढ़े तो वहीं दक्षिण में पेरियार ने इसमें पहल की। भारत में पुनर्निर्माण का दौर चल रहा था। ऐसे में भला महिलाओं के पिछड़े होने पर यह कैसे संभव था।
राजा राममोहन राय ने मैकाले की शिक्षा नीति का विरोध किया तो दूसरी ओर महिलाओं की उन्नति के लिए आवाज बुलंद भी की। ब्रह्म समाज और उसके बाद आर्य समाज ने भी महिलाओं की उन्नति के रास्ते खोले। महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया गया। हालाँकि इसमें तेजी आजादी के बाद ही आई। सरकार ने औरतों की शिक्षा के लिए कई नीतियाँ तैयार की, जिसके कारण महिला साक्षरता में जबर्दस्त उछाल आया। आजादी के केवल तीन दशक बाद इसमें पुरुषों की साक्षरता दर की अपेक्षा तेज गति से वृद्धि हुई।
सन 1971 में जहाँ केवल 22 फीसदी महिलाएँ साक्षर थीं, वहीं सन 2001 तक यह 54.16 फीसदी हो गया। इस दौरान महिला साक्षरता दर में 14.87 फीसदी की वृद्धि हुई और वहीं पुरुष साक्षरता दर में वृद्धि 11.72 फीसदी ही रही। लेकिन इस क्षेत्र में और तेजी की दरकार है। भारत के दूरदराज के इलाकों की बात तो दूर बड़े शहरों में भी लड़कियों को उच्चतर शिक्षा के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। जहाँ 2001 की जनसंख्या में पुरुषों की साक्षरता 75 फीसदी थी, वहीं महिला साक्षरता महज 54 फीसदी थी। वैसे साक्षरता दर में आई तेजी से उम्मीद की जा सकती है कि आने वालों दिनों में इसमें और तेजी आएगी।
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