अकेला मन और बातें हजार
बस यूं ही...अपनी तलाश में उलझा कुछ कहता कुछ सुनाता
Wednesday, February 3, 2010
पराई याद
एक
दो
चार...
नहीं हजार बार
उन चुनिंदा शब्दों को
समेटा मैंने।
सहेजा
इधर से उधर
उधर से इधर
लेकिन
अब नहीं उभरते हैं
तुम्हारे नाम।
तुम्हारे लिए भावनाएं
बचाकर रखी थीं,
न जाने कहां
गुम हो गईं।
अब याद भी
पराई-सी लगती है
तुम्हारी।
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